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भारतीय जाति व्यवस्था का इतिहास विभिन्न युगों में विकसित हुआ है। इसके अनुसार, भारतीय समाज को चार मुख्य वर्णों में बाँटा गया था - ब्राह्मण, शत्रिय, वैश्य, और शूद्र। संस्कृत में वर्ण शब्द का अर्थ होता है "रंग" या "वर्णन"।
इस व्यवस्था में, ब्राह्मण वर्ण के लोग धार्मिक ग्रंथों के पठन-पाठन में विशेषज्ञ थे, शत्रिय वर्ण युद्ध और राजनीति के क्षेत्र में अधिक गतिविधियों में लगे थे, वैश्य वर्ण वाणिज्य और व्यापार में व्यस्त थे, और शूद्र वर्ण के लोग सामाजिक काम करते थे।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे है भारत के एक समुदाय के बारे में जो धर्म से मुस्लिम है और उनकी जाती का नाम धूना है जिसका सरनेम मंसूरी है। इंटरनेट पर इस समुदाय के बारे में बहुत ही काम जानकारी मिलेगी लेकिन इस आर्टिकल के माध्यम से आप इस समाज के बारे में कुछ बातें जान सकेगे।
धुने धुनिया मँसूरी समाज का इतिहास और पेशा रूई को पीन कर रजाई तैयार करना था मँसूरी एक लकब है जो ईरान शहर मे पैदा हुए सूफी शहिद मँसूर हल्लाज के नाम को अपना सरनेम लगाते है मँसूरी समाज भारत में निवास है जिन्हें भारत मे अनेको नामो से जाना जाता है
कुछ मँसूरियो के पूर्वज अरब ओर ईरान के शेख थे तो कुछ मँसूरियो के अफगानिस्तान के पठान कुछ फारसी तो कुछ के हिन्दू राजपूत योद्धा थे जिनके (खानदान) से पता लगता है भारत मे अनेको गोत्र मे यह समुदाय है।
मुख्य रूप से दो तरह के मंसूरी होते है जिसमे अजमेरी मँसूरी व दूसरे चंदेरीवाल मँसूरी जिन्होने मुग़लो के जमाने मे चंदेरी सबसे पहले फतह किया था तभी से ये चंदेरीवाल कहलाये अंग्रेजो के जमाने मे मुस्लिम समुदाय कई भागो मे बट गया था।
सभी मुसलमान अपने गोत्र लगाते थे अब ईस बिरादरी के बुजुगो ने मिलकर इस बिरादरी को एक नाम दिया मँसूरी जो सूफी शाहिद मँसूर हल्लाज के नाम से मशहूर है ! मंसूरी समाज के लोग भारत के गुजरात राजिस्थान उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश राज्य में पाए जाने वाला एक भारतीय समुदाय हैं।
यह समुदाय अफगानिस्तान से कपास के खेती और कपास उद्योगों के व्यापार के लिए भारत आया था और उन्होंने भारत के कई क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की थी। मंसूरी समाज के लोग भारत के गुजरात राजिस्थान उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश राज्य में पाए जाने वाला एक भारतीय समुदाय हैं।
यह समुदाय अफगानिस्तान से कपास के खेती और कपास उद्योगों के व्यापार के लिए भारत आया था और उन्होंने भारत के कई क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की थी मँसूरी समुदाय में धर्मान्तरित और विदेशियों को भी शामिल किया गया है जो भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर चले गए थे और सूती कपास रूई व्यापार के पारंपरिक कब्जे में शामिल हैं।
मसूरी समुदाय जिसमे अरब के शेख से लेकर अफगानिस्तान के पठान जाती के लोग ओर हिन्दुस्तान मे हिन्दू राजपूत जाती के लोग शामिल है कुछ मँसूरी राजपुत से मुसलमानों में परिवर्तित हो गये थे। उन लोगों का मूल राजपूत जाति में विश्वास है।
इतिहास के अनुसार कुछ मँसूरी समुदाय मुख्य रूप से भारत अफगानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश चीन ईरान इराक़ तुर्की यमंन ओर ओमान मे फैला हुआ है यह मुस्लिम समुदाय द्वारा ((बेहन्ना धूना, पिंजरी, हल्लाज, धुनकर, मंसूरी)) कहलाता था और यह भी उल्लेख मिलता है भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद मँसूरी समाज के कुछ लोगो ने पठान जैसे नाम बदल लिए जिनमें से कुछ को तिलि में परिवर्तित किया गया है।
जनपद बिजनौर मे मँसूरी समाज के लोगो ने ईस पुरानी टेक्निकल को आज भी सँजो कर रखा है। यह लोग आज भी हाथ से इस यंत्र को चला कर रूई की पिनाई करते हैं।
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