Jamia Islamia Rihri Tajpura Saharanpur भारत में मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद इस्लाम की डूबती नैया को पार लगाने के लिए मुसलमानों को जो बौद्धिक और बौद्धिक मार्गदर्शन मिला उसे अगर हदीस मुबारक कहा जाए तो यह वही लोग हैं जिन्हें राष्ट्र का इतिहास और यदि उन्हें देश में "देवबंद के अकबर" के नाम से जाना जाए तो कोई बुरी बात नहीं होगी। इतिहास के चेहरे पर चाहे कितनी ही धूल क्यों न उड़ा दी जाए, यह तथ्य दिन की तरह स्पष्ट है कि आज इस देश की धरती के ऊपर और आकाश के नीचे सभी धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाएँ लाखों ईश्वर के सेवकों पर अपनी कृपा बरसा रही हैं। वे उस समय के महान संतों की ईमानदारी, कड़ी मेहनत, आदर्शों, समझ और दूरदर्शिता का सुंदर प्रतिबिंब हैं। अब से एक शताब्दी पीछे जब हम देखते हैं तो उस समय की परिस्थितियाँ, धर्म के विरुद्ध अंग्रेजी साम्राज्यवाद के जहरीले प्रलोभन और नास्तिकता और नास्तिकता का अंधकारमय वातावरण हमारी आँखों के सामने बार-बार दोहराया जाता है और हम महसूस करते हैं कि इन सेवाहीन विद्वानों और महान मुजाहिदीनों ने किस प्रकार कार्य किया था। अपना बहुमूल्य जीवन समर्पित करके इस्लाम की स
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